रक्षा बंधन भारत-दर्शन
रक्षा बंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया
जाता है। उत्तरी भारत में यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित
है औेर इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने
अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का
संकल्प लेते हुए अपना सनेहाभाव दर्शाते हैं।
रक्षा बंधन का उल्लेख हमारी पौराणिक कथाओं व महाभारत
में मिलता है और इसके अतिरिक्त इसकी ऐतिहासिक व साहित्यिक महत्ता भी
उल्लेखनीय है।
आइए, रक्षा-बंधन के सभी पक्षों पर विचार करें।
वामनावतार कथा - पौराणिक
एक सौ 100 यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि
के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने
लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की।
भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से
भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग
ली।
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भविष्य पुराण की कथा | रक्षा बंधन
भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों ) में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वास्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
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भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों ) में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वास्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
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महाभारत संबंधी कथा
महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के वृत्तांत मिलते हैं।
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महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के वृत्तांत मिलते हैं।
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ऐतिहासिक प्रसंग
राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
सिकंदर और पुरू
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया।
चंद्रशेखर आजाद का प्रसंग
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फिरंगी उनके पीछे लगे थे।
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राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
सिकंदर और पुरू
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवदान दिया।
चंद्रशेखर आजाद का प्रसंग
बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फिरंगी उनके पीछे लगे थे।
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साहित्यिक संदर्भ
अनेक साहित्यिक ग्रंथों में रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक, 'रक्षाबंधन' जिसका 1991 में 98वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है 'राखी उर्फ रक्षाबंधन'। हिंदी कवयित्रि, 'महादेवी वर्मा' व 'निराला' का भाई-बहन का स्नेह भी सर्वविदित है। निराला महादेवी के मुंहबोले भाई थे व रक्षाबंधन कभी न भुलते थे।
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अनेक साहित्यिक ग्रंथों में रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक, 'रक्षाबंधन' जिसका 1991 में 98वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है 'राखी उर्फ रक्षाबंधन'। हिंदी कवयित्रि, 'महादेवी वर्मा' व 'निराला' का भाई-बहन का स्नेह भी सर्वविदित है। निराला महादेवी के मुंहबोले भाई थे व रक्षाबंधन कभी न भुलते थे।
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हिंदी फिल्मों में रक्षा-बंधन
'राखी' और 'रक्षा-बंधन' पर अनेक फ़िल्में बनीं और अत्याधिक लोकप्रिय हुईं, इनमें से कुछ के गीत तो मानों अमर हो गए। इनकी लोकप्रियता आज दशकों पश्चात भी बनी हुई है।
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स्वंयसेवी आधार पर हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार
पत्रकारों के लिए सूचना पाने के विभिन्न माध्यमों में
फेसबुक भी अपना अहम स्थान बना रही है। हिंदी जगत से जुड़े लोगों के लिए यह
कोई नया समाचार न होगा कि सृजन- सम्मान संस्था व साहित्यिक वेब पत्रिका
सृजनगाथा डॉट कॉम द्वारा अभी तक चार अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों का सफल
आयोजन किया जा चुका है और पाँचवाँ आयोजन 24 जून से 1 जुलाई, 2012 तक
ताशकंद-समरकंद-उज्बेकिस्तान में आयोजित किया जा रहा है। मुझे सूचना मिलती
है तो मैं समारोह के संयोजक श्री जयप्रकाश मानस से और जानकारी हेतु
सम्पर्क करता हूँ। वे मेरी ई-मेल पूछकर मुझे ई-मेल पर सूचना भेजने की कहते
हैं।
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जापान का हिंदी संसार - सुषम बेदी
जैसा कि कुछ सालों से इधर जगह-जगह विदेशों में हिंदी के
कार्यक्रम शुरू हो रहे हैं उसी तरह से जापान में भी पिछले दस-बीस साल से
हिंदी पढ़ाई जा रही होगी, मैंने यही सोचा था जबकि सुरेश रितुपर्ण ने
टोकियो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरन स्टडीज़ की ओर से विश्व हिंदी सम्मेलन का
आमंत्रण भेजा। वहाँ पहुंचने के बाद मेरे लिए यह सचमुच बहुत सुखद आश्चर्य
का विषय था कि दरअसल जापान में हिंदी पढ़ाने का कार्यक्रम 100 साल से भी
अधिक पुराना है और वहां सन 1908 से हिंदी पढ़ाई जा रही है। आखिर हम भूल
कैसे सकते हैं कि जापान के साथ भारत के सम्बन्ध उस समय से चले आ रहे हैं
जब छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म का वहां आगमन हुआ। यह जरूर है कि सीधे भारत
से न आकर यह धर्म चीन और कोरिया के ज़रिये यहां आया। इस विश्वविद्यालय की
लाइब्रेरी भी बहुत सम्पन्न है। वहां लगभग 60-70 हजार के क़रीब हिंदी की
पुस्तकें और पत्रिकाएँ हैं।
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आपसी प्रेम एवं एकता का प्रतीक है होली
भारत संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से
ही काफी महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ
पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके
लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं। भारत में त्योहारों
एवं उत्सवों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव
से है।
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न्यूज़ीलैंड में हिन्दी पठन-पाठन
यूँ तो न्यूज़ीलैंड कुल 40 लाख की आबादी वाला छोटा सा
देश है, फिर भी हिंदी के मानचित्र पर अपनी पहचान रखता है। पंजाब और गुजरात
के भारतीय न्यूज़ीलैंड में बहुत पहले से बसे हुए हैं किन्तु 1990 के आसपास
बहुत से लोग मुम्बई, देहली, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा इत्यादि राज्यों
से आकर यहां बस गए। फिजी से भी बहुत से भारतीय राजनैतिक तख्ता-पलट के
दौरान यहां आ बसे। न्यूज़ीलैंड में फिजी भारतीयों की अनेक रामायण मंडलियाँ
सक्रिय हैं। यद्यपि फिजी मूल के भारतवंशी मूल रुप से हिंदी न बोल कर
हिंदुस्तानी बोलते हैं तथापि यथासंभव अपनी भाषा का ही उपयोग करते हैं।
उल्लेखनीय है कि फिजी में गुजराती, मलयाली, तमिल, बांग्ला, पंजाबी और हिंदी
भाषी सभी भारतवंशी लोग हिंदी के माध्यम से ही जुड़े हुए हैं।
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लाश
कमलेश्वर
सारा शहर सजा हुआ था। खास-खास सड़कों पर जगह-जगह फाटक बनाए गए थे। बिजली
के खम्बों पर झंडे, दीवारों पर पोस्टर। वालंटियर कई दिनों से शहर में परचे
बाँट रहे थे। मोर्चे की गतिविधियाँ तेज़ी पकड़ती जा रही थीं। ख़्याल तो
यहाँ तक था कि शायद रेलें, बसें और हवाई यातायात भी ठप्प हो जाएगा। शहर-भर
में भारी हड़ताल होगी और लाखों की संख्या में लोग जुलूस में भाग लेंगे।पूरी कहानी पढ़ें
कमलेश्वर के उपन्यासों में नारी शिक्षा और स्वातंत्र्य
श्रीमती उर्मिला देवी चौधरीशोधार्थी, वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान (भारत)
कमलेश्वर जी ने अपने उपन्यासों में नारी के विविध रूपों
को अभिव्यक्ति दी है। वे नारी जीवन के चितेरे ही नहीं उसके पक्षधर भी
हैं। उनके उपन्यासों की अधिकतर नारियां शिक्षित हैं जो कि समय-समय पर
अपने शिक्षित होने का प्रमाण देती हैं। 'काली आंधी' की मालती, 'तीसरा
आदमी' की चित्रा, 'कितने पाकिस्तान' की सलमा, ' सुबह-दोपहर-शाम' की शांता,
'समुद्र में खोया हुआ आदमी' की तारा 'वही बात' की समीरा, 'अनबीता
व्यतीत' की समीरा आदि ऐसी स्त्री पात्र हैं जिन्होंने अपने जीवन से
सम्बंधित ठोस कदम उठाए हैं। इन सभी आधुनिक नारियों ने नारी स्वतंत्रता का
बिगुल बजाकर नारी जीवन को एक नया और स्वतंत्र धरातल प्रदान किया है।
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रंग बदलता मौसम
सुभाष नीरव
पिछले कई दिनों से दिल्ली में भीषण गरमी पड़ रही थी लेकिन आज मौसम
अचानक खुशनुमा हो उठा था। प्रात: से ही रुक-रुक कर हल्की बूंदाबांदी हो
रही थी। आकाश काले बादलों से ढका हुआ था। धूप का कहीं नामोनिशान नहीं था। पूरी कहानी पढ़ें
ऐसे रोकें, शादी की फिजूलखर्ची - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारतीय समाज में तीन बड़े खर्चे माने जाते हैं। जनम, मरण और परण! कोई कितना ही गरीब हो, उसके दिल में हसरत रहती है कि....पूरा लेख पढ़ें
आशा भोंसले का तमाचा - डॉ. वेदप्रताप वैदिक
आशा भोंसले और तीजन बाई ने दिल्लीवालों की लू उतार दी। ये दोनों देवियाँ 'लिम्का बुक ऑफ रेकार्ड' के कार्यक्रम में दिल्ली आई थीं। संगीत संबंधी यह कार्यक्रम पूरी तरह अंग्रेजी में चल रहा था। यह कोई अपवाद नहीं था। आजकल दिल्ली में कोई भी कार्यक्रम यदि किसी पांच-सितारा होटल या इंडिया इंटरनेशनल सेंटर जैसी जगहों पर होता है तो वहां....पूरा लेख पढ़ें
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे।पूरा लेख पढ़ें
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा -नेताजी सुभाष चंद्र बोस
जब भारत स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था और नेताजी आज़ाद हिंद फ़ौज के लिए सक्रिय थे तब आज़ाद हिंद फ़ौज में भरती होने आए सभी युवक-युवतियों को संबोधित करते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा, "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।"पूरा लेख पढ़ें
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का हिंदी प्रेम
सुभाष चंद्र बोस के बारे में बताया जाता है कि वे हिंदी में ही बात किया करते थे। नेताजी हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते थे और वे अधिकतर अपने साथियों के साथ हिंदी में ही वार्तालाप करते थे। उन्होंने स्वयं हिंदी सीखी और अपने साथियों को कहा कि जब भी वे हिंदी बोलते हैं यदि वे कुछ गलती करें तो अवश्य उन्हें बताया जाए ताकि वह उस गलती को सुधार सकें।अब से ऐसा ही हो जाये
भले किसी को पसंद न आये ...
स्कूल में लग जाये ताला
दें बस्तों को देश निकाला
होमवर्क जुर्म घोषित हो,
कोई परीक्षा ले न पाये ...
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मकर संक्रांति
मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस संक्रांति को मनाया जाता है।पूरा लेख पढ़ें
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लोहड़ी
मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषतः पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है।रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र
शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।
आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"
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भारत का स्वाधीनता यज्ञ और हिन्दी काव्य
"हिमालय के ऑंगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार।"“जगे हम लगे जगाने विश्व, देश में फिर फैला आलोक,
व्योम तम पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संस्कृति हो उठी अशोक।”
परिवर्तन की जीवंत प्रक्रिया सतत् प्रवहमान है। संहार के बाद सृजन, क्रांति के बाद शांति और संघर्ष के बाद विमर्श का सिलसिला मानव के अन्तर्वाह्य जगत में चलता रहता है।
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यह कैसा हिंदोस्तान हो गया?
जिस देश में बचपन भूखा हैजहाँ रोज जवानी बिकती है
जहाँ भीख बुढ़ापा मांगे है
यह कैसा हिंदोस्तान हो गया?
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सुनहरा पक्षी | बाल कथा
संजय
वन के राजा वीरू शेर के दरबार में गाने की प्रतियोगिता का आयोजन था
राज्य के अच्छे-अच्छे नामी गायक वहां इक्ट्ठा हो रहे थे। काली कोयल, मीना मैना,चन्दू हाथी, चन्नी गिलहरी, बीनू बन्दर जैसे जंगल के जाने-माने गायक आए थे।
चिड़िया रानी | बाल कविता - डा रामनिवास मानव
सदा फुदकती, कभी न थकती,
गाती मीठी-मीठी बानी।
कैसे खुश रहती हो इतना,
सच-सच कहना चिड़िया रानी।
गाती मीठी-मीठी बानी।
कैसे खुश रहती हो इतना,
सच-सच कहना चिड़िया रानी।
पत्थर के आँसू - ब्रह्मदेव
जब हवा में कुछ मंथर गति आ जाती है वह कुछ ठंडी हो चलती है तो उस ठंडी–ठंडी हवा में बिना दाएँ–बाएँ देखे चहचहाते पक्षी उत्साहपूर्वक अपने बसेरे की ओर उड़ान भरते हैं। और जब किसी क्षुद्र नदी के किनारे के खेतों में धूल उड़ाते हुए पशु मस्तानी चाल से घँटी बजाते अपने घरों की ओर लौट पड़ते हैं उस समय बग़ल में फ़ाइलों का पुलिन्दा दबाए, हाथ में सब्जी. का थैला लिए, लड़खड़ाते क़दमों के सहारे, अपने झुके कंधों पर दुखते हुए सिर को जैसे–तैसे लादे एक व्यक्ति तंग बाज़ारों में से घर की ओर जा रहा होता है।
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जब हवा में कुछ मंथर गति आ जाती है वह कुछ ठंडी हो चलती है तो उस ठंडी–ठंडी हवा में बिना दाएँ–बाएँ देखे चहचहाते पक्षी उत्साहपूर्वक अपने बसेरे की ओर उड़ान भरते हैं। और जब किसी क्षुद्र नदी के किनारे के खेतों में धूल उड़ाते हुए पशु मस्तानी चाल से घँटी बजाते अपने घरों की ओर लौट पड़ते हैं उस समय बग़ल में फ़ाइलों का पुलिन्दा दबाए, हाथ में सब्जी. का थैला लिए, लड़खड़ाते क़दमों के सहारे, अपने झुके कंधों पर दुखते हुए सिर को जैसे–तैसे लादे एक व्यक्ति तंग बाज़ारों में से घर की ओर जा रहा होता है।
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वापसी - उषा प्रियंवदा
गजाधर बाबू ने कमरे में जमा सामान पर एक नज़र
दौड़ाई - दो बक्स, डोलची, बाल्टी। ''यह डिब्बा कैसा है, गनेशी?''
उन्होंने पूछा। गनेशी बिस्तर बाँधता हुआ, कुछ गर्व, कुछ दु:ख, कुछ लज्जा
से बोला, ''घरवाली ने साथ में कुछ बेसन के लड्डू रख दिए हैं। कहा, बाबूजी
को पसन्द थे, अब कहाँ हम गरीब लोग आपकी कुछ खातिर कर पाएँगे।'' घर जाने
की खुशी में भी गजाधर बाबू ने एक विषाद का अनुभव किया जैसे एक परिचित,
स्नेह, आदरमय, सहज संसार से उनका नाता टूट रहा था।
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नया मकान - रोहित कुमार ‘हैप्पी’
कई साल किराये पर रहने के बाद आज उसने नया मकान खरीद ही लिया था।
'चलो आज ईश्वर की कृपा से घर भी बन गया।' माँ ने प्रसन्नता जाहिर की।
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'चलो आज ईश्वर की कृपा से घर भी बन गया।' माँ ने प्रसन्नता जाहिर की।
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दूसरी दुनिया का आदमी - रोहित कुमार ‘हैप्पी’
वो शक्ल सूरत से कैसा था, बताने में असमर्थ हूँ। पर हाँ, उसके हाव-भावों से ये पूर्णतया स्पष्ट था कि वो काफी उदास और चिंतित था।
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अमरकाँत की कहानी
दोपहर का भोजन - अमरकाँत
सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद
चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर शायद पैर की उँगलियाँ
या ज़मीन पर चलते चींटे-चींटियों को देखने लगी। अचानक उसे मालूम हुआ कि
बहुत देर से उसे प्यास लगी है। वह मतवाले की तरह उठी और घड़े से लोटा-भर
पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई। खाली पानी उसके कलेजे में लग गया और वह ‘हाय
राम!’ कहकर वहीं ज़मीन पर लेट गई।
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यशपाल की कहानी
करवा का व्रत
कन्हैयालाल अपने दफ्तर के
हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन
लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिए
सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी
उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे अवसर पर दूसरों से पूछे जाते हैं और
फिर वही परामर्श उसे दिये गये जो अनुभवी लोग नवविवाहितों को दिया करते हैं।
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दिवाली
पखवाड़े बाद दिवाली थी, सारा शहर
दिवाली के स्वागत में रोशनी से झिलमिला रहा था। कहीं चीनी मिट्टी के बर्तन
बिक रहे थे तो कहीं मिठाई की दुकानों से आने वाली मन-भावन सुगंध लालायित
कर रही थी।
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ओछी मानसिकता
ढेर सारे माटी के दीयों को देखते ही
सावित्री पति पर बरस पड़ी, ‘दीपावली में वैसे ही मुझे घर के काम से फुर्सत
नहीं है और ऊपर से ये ढेर सारे दीये उठा लाए। अपनी इस ओछी मानसिकता को
त्याग दो कि ज्यादा दीपक जलाने से ज्यादा लक्ष्मी आएगी।
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धनतेरस -पौराणिक कथा
प्राचीन काल में एक राजा थे। उनके
कोई संतान नहीं थी। अत्याधिक पूजा-अर्चना व मन्नतों के पश्चात दैव योग से
उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने बालक की कुण्डली बनाते समय
भविष्यवाणी की कि इस बालक के विवाह के चार दिन के बाद उसकी मृत्यु हो जगी।
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गीतपूरी कहानी पढ़ें
तुम दीवाली बनकर जग का तम दूर करो,
मैं होली बनकर बिछड़े हृदय मिलाऊँगा!
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जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।
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पिछले अंकों से
चीलें
भीष्म साहनी की कहानी
चील ने फिर से झपट्टा मारा है। ऊपर, आकाश में
मण्डरा रही थी जब सहसा, अर्धवृत्त बनाती हुई तेजी से नीचे उतरी और एक ही
झपट्टे में, मांस के लोथड़े क़ो पंजों में दबोच कर फिर से वैसा ही
अर्द्ववृत्त बनाती हुई ऊपर चली गई। वह कब्रगाह के ऊंचे मुनारे पर जा बैठी
है और अपनी पीली चोंच, मांस के लोथडे में बार-बार गाड़ने लगी।पूरी कहानी पढ़ें
काबुलीवाला
रवीनद्रनाथ ठाकुर की कहानी
मेरी पाँच बरस की लड़की मिनी से घड़ीभर भी बोले बिना नहीं रहा
जाता। एक दिन वह सवेरे-सवेरे ही बोली, "बाबूजी, रामदयाल दरबान है न, वह
‘काक’ को ‘कौआ’ कहता है। वह कुछ जानता नहीं न, बाबूजी।" मेरे कुछ कहने से
पहले ही उसने दूसरी बात छेड़ दी। पूरी कहानी पढ़ें
हार की जीत
सुदर्शन की कहानी
माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता
है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्-भजन से जो समय
बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। पूरी कहानी पढ़ें
मेजबान - खलील जिब्रान
'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा।
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खुशामद - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, 'कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली।
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उलझन
‘ए फॉर एप्पल – बी फॉर बैट’ एक देसी बच्चा अँग्रेजी पढ़ रहा था। यह पढ़ाई अपने देश भारत में पढ़ाई जा रही थी।
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दुख का कारण
एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका
नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था। एक दिन व्यापारी अपने नौकर को सारी
संपत्ति देकर चल बसा। सम्पत्ति का मालिक बनने के बाद नौकर रात को सोने
की कोशिश कर रहा था, किन्तु अब उसे नींद नहीं आ रही थी।
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समाधान
एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।
एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से
मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने
बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।
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शब्द
एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर
लड़ाई हुई। बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे ख़ुद पर शर्म
आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के पास पहुँचा और पूछा, ‘‘मैं अपनी
गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ ।"
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दंभी
एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार
हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण
पढ़ा है, नाविक?’’
नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’
नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’
दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’
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दूरदर्शी
एक आदमी सोना तोलने के लिए सुनार के पास
तराजू मांगने आया। सुनार ने कहा, ‘‘मियाँ, अपना रास्ता लो। मेरे
पास छलनी नहीं है।’’ उसने कहा, ‘‘मजाक न कर, भाई, मुझे तराजू
चाहिए।’’
सुनार ने कहा, ‘‘मेरी दुकान में झाडू नहीं है।"
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सुनार ने कहा, ‘‘मेरी दुकान में झाडू नहीं है।"
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मासूम सज़ा - अकबर बीरबल के किस्से
संजय ग्रोवर की ग़ज़लें
रोहित कुमार ‘हैप्पी’ की ग़ज़लें
हास्य-काव्य
आराम करो- गोपालप्रसाद व्यास
एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।
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इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।
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काका हाथरस्सी का हास्य काव्य
यमराज का इस्तीफा -अमित कुमार सिंह
एक दिन
यमदेव ने दे दिया
अपना इस्तीफा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब
संतुलन,
करने के लिए
स्थिति का आकलन,
इन्द्र देव ने देवताओं
की आपात सभा
बुलाई
और फिर यमराज
को कॉल लगाई।
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यमदेव ने दे दिया
अपना इस्तीफा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब
संतुलन,
करने के लिए
स्थिति का आकलन,
इन्द्र देव ने देवताओं
की आपात सभा
बुलाई
और फिर यमराज
को कॉल लगाई।
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पिछले अँक से
वरदान
मुँशी प्रेमचँद की कहानी
विन्घ्याचल पर्वत मध्यरात्रि के निविड़
अन्धकार में काल देव की भांति खड़ा था। उस पर उगे हुए छोटे-छोटे वृक्ष इस
प्रकार दष्टिगोचर होते थे, मानो ये उसकी जटाएं है और अष्टभुजा देवी का
मन्दिर जिसके कलश पर श्वेत पताकाएं वायु की मन्द-मन्द तरंगों में लहरा रही
थीं, उस देव का मस्तक है मंदिर में एक झिलमिलाता हुआ दीपक था, जिसे देखकर
किसी धुंधले तारे का मान हो जाता था। पूरी कहानी पढ़ें
वैराग्य
मुँशी प्रेमचँद की कहानी
मुँशी शालिग्राम बनारस के पुराने रईस थे।
जीवन-वृति वकालत थी और पैतृक सम्पत्ति भी अधिक थी। दशाश्वमेध घाट पर उनका
वैभवान्वित गृह आकाश को स्पर्श करता था। उदार ऐसे कि पचीस-तीस हजार की
वाषिर्क आय भी व्यय को पूरी न होती थी। साधु-ब्राहमणों के बड़े
श्रद्वावान थे।पूरी कहानी पढ़ें
उदार दृष्टि
पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान बन गया था।
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ग़ज़लें
कुँअर बेचैन की ग़ज़लें
दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिएसारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे
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चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया
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कविताएं
दिशा और दशा
मुझे भारत में आए हुए कई महीने हो गए थे और अब तो वापिस न्यूजीलैड लौटने का समय हो गया था।अरे भई, तुम्हारी सब ख़रीदारी कर लाई हूँ, लो पकड़ो ये किताबें।' बडी दीदी ने सामान मुझे थमाते हुए कहा, 'अरे हाँ, बस वो भारत माता वाली तस्वीर जो तुमने कही थी, कहीं नहीं मिली। तुम अगर बाज़ार जाओ तो खुद ही देख लेना।
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दूसरा रूख
चित्रकार दोस्त ने भेंट स्वरूप एक तस्वीर दी। आवरण हटा कर देखा तो निहायत ख़ुशी हुई। तस्वीर भारत माता की थी। माँ-सी सुंदर, भोली सूरत, अधरों पर मुसकान कंठ में सुशोभित आभूषण, मस्तक को और ऊँचा करता हुआ मुकुट व हाथ में तिरंगा।
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