brastachar

रष्टाचार का प्रभामंडल इसी तरह बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लोग भ्रष्टाचार को भगवान मानने लगेंगे। सच बात तो यह है कि कई लोग अभी भी भ्रष्टाचार को भगवान की तरह पूजते हैं लेकिन सबके सामने स्वीकार करने से हिचकिचाते हैं। आपने देखा होगा कि विवाहेत्तर प्रेम के शुरुआती दिनों में हर नेता या फिल्मी हीरो अपने प्रेम के चर्चे को यह कहकर अफवाह बताता है कि वह मीडिया द्वारा उसकी लोकप्रियता को भुनाने का प्रयास है।

भ्रष्टाचार के मामले में भी कुछ कुछ ऐसा ही है। आदमी जब तक घोर भ्रष्ट नहीं हो जाता, तक तब भ्रष्टाचार के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ता है। जब भ्रष्टाचार का रंग पूरी तरह चढ़ जाता है, तब वह ईमानदार लोगों को देखकर नाक-भौं सिकोड़ने लगता है। भ्रष्टाचार और प्रेम छिपाए नहीं छुपते लेकिन लोग इन्हें तब तक स्वीकार नहीं करते, जब तक रंगेहाथों नहीं पकड़ लिए जाएं।

करने वाले करते रहें भ्रष्टाचार का विरोध लेकिन जो भ्रष्टाचार अपने अस्तित्व में आने के बाद अपने भक्तों को सुख और संपत्ति देता हो, उसे वे लोग बुरा कैसे मान सकते हैं जिनकी पीढ़ियों का उद्धार हो गया हो। जमाने का क्या है, उसे तो सबको बुरा कहने की आदत है। इतिहास उठाकर देख लो, लोगों ने जिसे भला-बुरा कहा है, बाद में उसी का मंदिर बनाकर पूजा है।

अभी लोग भले ही भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे हों लेकिन विरोध करने से भ्रष्टाचार की सेहत पर क्या फर्क पड़ता है? यह जमाना तो प्रचार का है। जिस दौर में नायिकाएँ सुर्खियों में रहने के लिए जान-बूझकर ऐसी हरकतें करती हों कि उनका विरोध किया जाए, उस दौर में भ्रष्टाचार का ग्लैमर कौन-सा किसी कमसिन नायिका से कम है।

भ्रष्टाचार जब प्रकट होता है तो अच्छे-अच्छों के जलवे सिमट जाते हैं। भ्रष्टता यदि निकृष्टता से मिल जाए तो समझिए सोने में सुहागा है। ज्यादातर देखने में यही आता है कि जो आदमी भ्रष्ट होता है, वह निकृष्ट भी होता है। निकृष्टता के बिना भ्रष्टता या भ्रष्टता के बिना निकृष्टता की कल्पना करना वैसा ही है जैसा हिन्दी फिल्मों के किसी आइटम नंबर को देखते हुए यह कल्पना की जाए कि आइटम डांसर नाचते हुए भगवान की आरती गाएगी।

प्रेम में भ्रष्ट आचरण और भ्रष्ट आचरण से प्रेम हमारे दौर की दो खास उपलब्धियां हो गई हैं। आप कल्पना कीजिए उस दिन की जब देश में भ्रष्टाचार के भक्तों की तादाद बढ़ जाएगी और भ्रष्टाचार के मंदिर गली-गली में बनने लगेंगे। सुबह-शाम भ्रष्टाचार का पूजन होगा। लोग जागरण करेंगे भ्रष्टाचार को जगाने के लिए।

भ्रष्टाचार के मंदिरों में मन्नतें मांगी जाएंगी कि अफसर यदि दस फीसद कमीशन की बजाय पांच फीसद कमीशन पर ठेका देने के लिए तैयार हो गया तो भ्रष्टाचार बाबा, दो फीसद का चढ़ावा तेरे मंदिर में चढ़ाऊंगा। इसीलिए मुझे इंतजार है उस दिन का, जब देश में भ्रष्टाचार के मंदिर बनने लगेंगे और लोग उत्साह से नारे लगाएंगे- बोल भ्रष्टाचार बाबा की जय, भ्रष्टाचार बाबा की जय।

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