राकेश ‘सोहम’ की हास्य कविता : नाम है भ्रष्टाचार

जंहा देखो वहीं आजकल भ्रष्टाचार की आग लगी पड़ी है, मानों यह भ्रष्टाचार नहीं कोई दैत्य हो गया जो सबको खाने को दौड रहा है. देश के प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में आने को तैयार हैं पर उनके तथाकथित आलाकमान उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहे. कभी जब भाजपा की सरकार होती थी तो यही प्रधानमंत्री लोकपाल बनाते थे और अब खुद कह रहे है कि यह किसी काम का नहीं. खैर प्रधानमंत्री की छोड़े अब तो नेताओं ने भी घोटालों की सारी हदें पार कर दी है.




भ्रष्टाचार के इसी रंग को कवि राकेश ने बड़े ही मजाकिया अंदाज में पेश किया है जो वाकई बेहद कमाल का है. जरा गौर फरमाइएं इस हास्य कविता पर :




नाम है भ्रष्टाचार – हास्य कविता




होली के दिन जनमा
एक नेता का बेटा,
मुसीबत बन गया
चैन से नहीं लेता ?


पैदा होते ही
कमाल कर गया,
उठा, बैठा और
नेता की कुर्सी पर चढ़ गया !


यह देख डॉक्टर घबराई,
बोली – ये तो अजूबा है !
इसके सामने तो
साइंस भी झूठा है !!
इसे पकड़ो और लिटाओ
दुधमुंहा शिशु है, माँ का दूध पिलाओ ।


दूध की बात सुनकर
शिशु ने फुर्ती दिखाई,
पास खड़ी नर्स की
पकड़ी कलाई
बोला – आज तो होली है,
ये कब काम आएगी,
काजू-बादाम की भंग
अपने हाथों से पिलाएगी ।


नेता और डॉक्टर के
समझाने पर भी वह नहीं माना,
चींख-चींखकर अस्पताल सिर पर उठाया,
और गाने लगा ‘शीला’ का गाना !


उसके बचपने में
‘शीला की ज़वानी’ छा गई,
‘मुन्नी बदनाम न हो
इसलिए नर्स भंग की रिश्वत लेकर आ गई !


शिशु को भंग पीता देख
नेताजी घबराये और बोले -
‘तुम कौन हो और
क्यों कर रहे हो अत्याचार ?’
शिशु बोला – तुम्हारी ही औलाद हूँ
और नाम है भ्रष्टाचार

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