होली के अवसर पर विशेष लेख

होली हमारे देश का एक परंपरागत त्यौहार है जो उल्लास से मनाया जाता रहा है। यह अलग बात है कि इसे मनाने का ढंग अब लोगों का अलग अलग हो गया है। कोई रंग खेलने मित्रों के घर पर जाता है तो कोई घर पर ही बैठकर खापीकर मनोरंजन करते हुए समय बिताता है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब तक हमारे देश में संचार और प्रचार क्रांति नहीं हुई थी तब तक इस त्यौहार को मस्ती के भाव से मनाया जरूर जाता था पर अनेक लोगों ने इस अवसर पर दूसरे को अपमानित और बदनाम करने के लिये भी अपना प्रयास कर दिखाया। केवल शब्दिक नहीं बल्कि सचमुच में नाली से कीचड़ उठाकर फैंकने की भी घटनायें हुईं। अनेक लोगों ने तो इस अवसर पर अपने दुश्मन पर तेजाब वगैरह डालकर उनको इतनी हानि पहुंचाई कि उसे देख सुनकर लोगों का मन ही इस त्यौहार से वितृष्णा से भर गया। तब होली उल्लास कम चिंता का विषय बनती जा रही थी।
शराब पीकर हुड़दंग करने वालों ने लंबे समय तक शहरों में आतंक का वातावरण भी निर्मित किया। समय के साथ सरकारें भी चेतीं और जब कानून का डंडा चला तो फिर हुडदंगबाजों की हालत भी खराब हुई। हर बरस सरकारें और प्रशासन होली पर बहुत सतर्कता बरतता है। इस बीच हुआ यह कि शहरी क्षेत्रों में अनेक लोग होली से बाहर निकलने से कतराने लगे। एक तरह से यह उनकी आदत बन गयी। अब तो ऐसे अनेक लोग हैं जो इस त्यौहार को घर पर बैठकर ही बिताते हैं।
जब सरकारों का ध्यान इस तरफ ध्यान नहीं था और पुलिस प्रशासन इसे सामान्य त्यौहारों की तरह ही लेता था तब हुड़दंगी राह चलते हुए किसी भी आदमी को नाली में पटक देते। उस पर कीचड़ उछालते। शहरों में तो यह संभव ही नहीं था कि कोई पुरुष अपने घर की स्त्री को साथ ले जाने की सोचे। जब पूरे देश में होली के अवसर पर सुरक्षा व्यवस्था का प्रचनल शुरु हुआ तब ऐसी घटनायें कम हो गयी हैं। इधर टीवी, वीडियो, कंप्यूटर तथा अन्य भौतिक साधनों की प्रचुरता ने लोगों को दायरे में कैद कर दिया और अब घर से बाहर जाकर होली खेलने वालों की संख्या कम ही हो गयी है। अब तो यह स्थिति है कि कोई भी आदमी शायद ही अनजाने आदमी पर रंग डालता हो। फिर महंगाई और रंगों की मिलावट ने भी इसका मजा बिगाड़ा।
महंगाई की बात पर याद आया। आज सुबह एक मित्र के घर जाना हुआ। उसी समय उसके मोहल्ले में होली जलाने के चंदा मांगने वाले कुछ युवक आये। हमने मित्र से हाथ मिलाया और अंदर चले गये। उधर उनकी पत्नी पचास रुपये लेकर आयी और लड़कों को सौंपते हुए बोली-‘इससे ज्यादा मत मांगना।’
एक युवक ने कहा-‘नहीं, हमें अब सौ रुपये चाहिये। महंगाई बढ़ गयी है।’
मित्र की पत्नी ने कहा-‘अरे वाह! तुम्हारे लिये महंगाई बढ़ी है और हमारे लिये क्या कम हो गयी? इससे ज्यादा नहीं दूंगी।’
लड़के धनिया, चीनी, आलू, और प्याज के भाव बताकर चंदे की राशि बढ़ाकर देने की मांग करने लगे।
मित्र ने अपनी पत्नी से कहा-‘दे दो सौ रुपया, नहीं तो यह बहुत सारी चीजों के दाम बताने लगेंगे। उनको सुनने से अच्छा है इनकी बात मान लो।’
गृहस्वामिनी ने सौ रुपये दे दिये। युवकों ने जाते हुए कहा-‘अंकल और अंाटी, आप रात को जरूर आईये। यह मोहल्ले की होली है, चंदा देने से ही काम नहीं चलेगा। आना भी जरूर है।’
मित्र ने बताया कि किसी समय उन्होंने ही स्वयं इस होली की शुरुआत की थी। उस समय लड़कों के बाप स्वयं चंदा देकर होली का आयोजन करते थे अब यह जिम्मेदारी लड़कों पर है।’
कहने का अभिप्राय यह है कि इस सामूहिक त्यौहार को सामूहिकता से मनाने की एक बेहतर परंपरा जारी है। जबकि पहले जोर जबरदस्ती सामान उठाकर ले जाकर या चंदा ऐंठकर होली मनाने का गंदा प्रचलन अब बिदा हो गया है। जहां नहीं हुआ वह उसे रोकना चाहिये। सच बात तो यह है कि अनेक बेवकूफ लोगों ने अपने कुकृत्यों से इसे बदनाम कर दिया। यह खुशी की बात है कि समय के साथ अब उल्लास और शांति से यह त्यौहार मनाया जाता है।

इस अवसर पर कुछ क्षणिकायें
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रंगों में मिलावट
खोऐ में मिलावट
व्यवहार में दिखावट
होली कैसे मनायें।
कच्चे रंग नहीं चढ़ता
अब इस बेरंग मन पर
दिखावटी प्यार कैसे जतायें।
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रंगों के संग
खेलते हुए उन्होंने होली
कुछ इस तरह मनाई,
नोटों के झूंड में बैठकर
इठलाते रहे
इसलिये उनकी पूरी काया
रंगीन नज़र आयी।
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अगर रुपयों का रंग चढ़ा गया तो
फिर कौनसे रंग में
बेरंग इंसान नहायेगा,
आंख पर कोई रंग असर नहीं करता
होली हो या दिवाली
उसे बस मुद्रा में ही रंग नज़र आयेगा।

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